Good morning friends.
सुप्रभात।
09 14 2014
छोड़ो कल की बातें
कल की बात हुई पुरानी
आज Sunday है
लिखते हैं फिर एक नयी कहानी ।
थोड़ी है पुरानी
पर नशा देगी वही तूफानी
1968-69 का ज़माना था
bhel Ranipur Haridwar की बात है
Sunday का दिन था
तीन दोस्त और हमारा नौकर बिष्ट साथ था
निकल पड़े थे सबेरे सबेरे
साइकिल से घर से
चिल्ला घाट से गंगा पार उतरे
साइकिल साथ थी नाव पर सवार
चल पड़े जगंल के रास्ते
भीतर दूर पहुँच गये
बिष्ट के मामा ने
खिलाया मावा पिलाया दूध
जंगल भी घुमाया
रास्ता भी बताया
और फिर कहा
सूरज है ढलने को
चलना है वापस आपको
देर हो जाएगी
तो मुश्किल बढ़ जाएगी।
निकल पड़े हम वहाँ से
लौटने लगे पहाड़ी रास्ते से
थोड़े ही दूर चले
मिल गए हाथी महाराज
दौड़ लिया हम चारों को
जान बचा भागे थे
राह हम भूले थे
जाना था चण्डी घाट
बिजनौर की ओर चले गए
प्यासे परेशान
साइकिल से जंगल में
राह ढूढं रहे
गूजरों का गावँ मिला
एक गूजरी से मागँ पानी पिया
बड़ी मुश्किल से
वापसी का रास्ता पता किया
लौटते लौटते शाम हो गई
अन्धेरा छाने लगा
दिल हमारा धक धक करने लगा
लेट और हुए अगर
मिलेगी न नाव कोई
रात काटनी पड़ेगी
चण्डी घाट पर
हाफंनी निकल रही थी
जान सूख रही थी
क्या होगा क्या नहीं
समझ कुछ नहीं आ रहा था
पैडल पर जोर पूरा लग रहा था
भागते भागते किसी तरह
घाट पकड़ लिया
नाव थी बीच में
चिल्ला चिल्ला कर
वापसी उसे बुला लिया
किनारे आते ही हम नाव में गिर पडे
दूसरे लोगों ने साइकिल नाव पर चढ़ा लीं
बेहोश से पड़े पड़े गंगा पार की
माँ गंगा को प्रणाम किया
दुबारा ऐसी गलती न करने का वचन लिया
देर रात अपने घर लौटे
साइकिल सवारी का आनंद ऐसे लिया ।।
यह वास्तविक घटना पर आधारित पिकनिक वृतांत था। मित्रों, उस वक्त में हरिद्वार में गंगा पार करने के लिये नाव से जाना पडता था और पुल जो अब है नहीं था।
आज मुझे अपने वह दो साथी अनुपम अवस्थी और दिनेश सक्सेना जी की याद आ रही है जो हमारे साथ इस tour में गये थे। वह उम्र ही कुछ ऐसी थी कि कुछ साहसिक करने की ललक मन में बनी रहती थी।
आज के Sunday का यह सुबह सुबह का कलम का कमाल आपकी भेंट।
शुक्रिया।
//सुरेन्द्रपालसिंह//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
सुप्रभात।
09 14 2014
छोड़ो कल की बातें
कल की बात हुई पुरानी
आज Sunday है
लिखते हैं फिर एक नयी कहानी ।
थोड़ी है पुरानी
पर नशा देगी वही तूफानी
1968-69 का ज़माना था
bhel Ranipur Haridwar की बात है
Sunday का दिन था
तीन दोस्त और हमारा नौकर बिष्ट साथ था
निकल पड़े थे सबेरे सबेरे
साइकिल से घर से
चिल्ला घाट से गंगा पार उतरे
साइकिल साथ थी नाव पर सवार
चल पड़े जगंल के रास्ते
भीतर दूर पहुँच गये
बिष्ट के मामा ने
खिलाया मावा पिलाया दूध
जंगल भी घुमाया
रास्ता भी बताया
और फिर कहा
सूरज है ढलने को
चलना है वापस आपको
देर हो जाएगी
तो मुश्किल बढ़ जाएगी।
निकल पड़े हम वहाँ से
लौटने लगे पहाड़ी रास्ते से
थोड़े ही दूर चले
मिल गए हाथी महाराज
दौड़ लिया हम चारों को
जान बचा भागे थे
राह हम भूले थे
जाना था चण्डी घाट
बिजनौर की ओर चले गए
प्यासे परेशान
साइकिल से जंगल में
राह ढूढं रहे
गूजरों का गावँ मिला
एक गूजरी से मागँ पानी पिया
बड़ी मुश्किल से
वापसी का रास्ता पता किया
लौटते लौटते शाम हो गई
अन्धेरा छाने लगा
दिल हमारा धक धक करने लगा
लेट और हुए अगर
मिलेगी न नाव कोई
रात काटनी पड़ेगी
चण्डी घाट पर
हाफंनी निकल रही थी
जान सूख रही थी
क्या होगा क्या नहीं
समझ कुछ नहीं आ रहा था
पैडल पर जोर पूरा लग रहा था
भागते भागते किसी तरह
घाट पकड़ लिया
नाव थी बीच में
चिल्ला चिल्ला कर
वापसी उसे बुला लिया
किनारे आते ही हम नाव में गिर पडे
दूसरे लोगों ने साइकिल नाव पर चढ़ा लीं
बेहोश से पड़े पड़े गंगा पार की
माँ गंगा को प्रणाम किया
दुबारा ऐसी गलती न करने का वचन लिया
देर रात अपने घर लौटे
साइकिल सवारी का आनंद ऐसे लिया ।।
यह वास्तविक घटना पर आधारित पिकनिक वृतांत था। मित्रों, उस वक्त में हरिद्वार में गंगा पार करने के लिये नाव से जाना पडता था और पुल जो अब है नहीं था।
आज मुझे अपने वह दो साथी अनुपम अवस्थी और दिनेश सक्सेना जी की याद आ रही है जो हमारे साथ इस tour में गये थे। वह उम्र ही कुछ ऐसी थी कि कुछ साहसिक करने की ललक मन में बनी रहती थी।
आज के Sunday का यह सुबह सुबह का कलम का कमाल आपकी भेंट।
शुक्रिया।
//सुरेन्द्रपालसिंह//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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