कलम से____
शिख से सूख रहा हूँ
हृदय काम नहीं कर रहा शायद
हाल यह इसीलिए हुआ है
हरा भरा था कभी
धढ़ ये कह रहा है !!
कमर टेड़ी हो गई है
सीधी अब क्या होगी
जैसी है वैसी ही अब रहेगी !!
गुमान बहुत करता था
अपनी जवानी पर
वो सब छूमंतर हो गई है !!!
कुछ साल और चलूँगा
फिर किसी की चिता में
लकड़ी बन जलूँगा !!!
अंत सभी का होना है
शाश्वत सच मैं जान गया हूँ
इसीलिए अपने पैर खड़ा हूँ !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
शिख से सूख रहा हूँ
हृदय काम नहीं कर रहा शायद
हाल यह इसीलिए हुआ है
हरा भरा था कभी
धढ़ ये कह रहा है !!
कमर टेड़ी हो गई है
सीधी अब क्या होगी
जैसी है वैसी ही अब रहेगी !!
गुमान बहुत करता था
अपनी जवानी पर
वो सब छूमंतर हो गई है !!!
कुछ साल और चलूँगा
फिर किसी की चिता में
लकड़ी बन जलूँगा !!!
अंत सभी का होना है
शाश्वत सच मैं जान गया हूँ
इसीलिए अपने पैर खड़ा हूँ !!!
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