कलम से____
राह तकते तकते थक गईं हैं निगाहें
आसमां के रंग भी गहरा चुके हैं
नहीं आओगे तुम पंक्षी बता यह गए हैं
मन के किसी कोने से आवाज आ रही है
नहीं, तुम अभी बस अभी आ रही हो।
गोधूलि बेला है लौटने का वक्त हो चला है
मेरा मन भी अब डोल रहा है कह रहा है
कि शायद अब नहीं आरही हो।
कुछ देर और बैठता हूँ
इतंजार मैं करता हूँ
चाँद तारे फलक पर उभरने लगे हैं
यामनी वाट जोह रही है
अब वह भी कह रही है
आज वो आने वाले नहीं हैं ।
सच क्या है
बता दो मुझको
तुम आज आ रही हो
या नहीं आज आ सकोगी
मजबूरी समझ लूगां मैं तेरी
कुछ न कहूँगा
दोष दूगां अपनी किस्मत को
समछा लूगां इस पगले मन को !!
कभी कभी अपने से बात करना सुहाता है
दर्द दिल का कुछ कम हो जाता है !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
राह तकते तकते थक गईं हैं निगाहें
आसमां के रंग भी गहरा चुके हैं
नहीं आओगे तुम पंक्षी बता यह गए हैं
मन के किसी कोने से आवाज आ रही है
नहीं, तुम अभी बस अभी आ रही हो।
गोधूलि बेला है लौटने का वक्त हो चला है
मेरा मन भी अब डोल रहा है कह रहा है
कि शायद अब नहीं आरही हो।
कुछ देर और बैठता हूँ
इतंजार मैं करता हूँ
चाँद तारे फलक पर उभरने लगे हैं
यामनी वाट जोह रही है
अब वह भी कह रही है
आज वो आने वाले नहीं हैं ।
सच क्या है
बता दो मुझको
तुम आज आ रही हो
या नहीं आज आ सकोगी
मजबूरी समझ लूगां मैं तेरी
कुछ न कहूँगा
दोष दूगां अपनी किस्मत को
समछा लूगां इस पगले मन को !!
कभी कभी अपने से बात करना सुहाता है
दर्द दिल का कुछ कम हो जाता है !!!
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