कलम से____
रात दिवाली
लोगां ने खूब मनाई
पटाखों की आवाज
आधी रात के पार आई
धुआँ धुआँ हो गया
मेरा शहर
हर आखँ रोने लगी
फिक्र इसकी किसी ने नहीं करी
कबूतर कबूतरी भी
अपने घर न आ सकीं
रात भर परेशान रहीं
न जाने इस शोरगुल
में वह कहाँ रहीं
मेहमान जितने आए थे
मधुर याद संजोए
पिछले साल की
वह भी सब चले गये
सुबह से कोई नजर आया नहीं
रात गुजारी कहाँ पता नहीं
संवेदनशील मानव रहित समाज है हो गया
इन्सान ही इन्सान का दुश्मन हो गया।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
रात दिवाली
लोगां ने खूब मनाई
पटाखों की आवाज
आधी रात के पार आई
धुआँ धुआँ हो गया
मेरा शहर
हर आखँ रोने लगी
फिक्र इसकी किसी ने नहीं करी
कबूतर कबूतरी भी
अपने घर न आ सकीं
रात भर परेशान रहीं
न जाने इस शोरगुल
में वह कहाँ रहीं
मेहमान जितने आए थे
मधुर याद संजोए
पिछले साल की
वह भी सब चले गये
सुबह से कोई नजर आया नहीं
रात गुजारी कहाँ पता नहीं
संवेदनशील मानव रहित समाज है हो गया
इन्सान ही इन्सान का दुश्मन हो गया।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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