कलम से____
सरदी का मौसम
अब करीब है
बूलन्स को निकाल लो यारो
थोड़ी धूप दिखा दो यारो
अकेले रहते हो तो यह काम
खुद कर लो यारो
घरवाली साथ है
तो उसका हाथ बटाओ यारो ।
माँ के साथ हो
फिर चिंता की कोई बात नहीं
सालों से करती आई है
अबके भी कर लेगी यारा
तू जब रोता था
हाथ उसीका बढ़ता था
आसूँ भी वही पोंछा करती थी
आज भी तू जब सोता है
रजाई की रुई की गरमाहट
उसीके हाथों के पिरोये धागों
की बज़ह से मिलती है
वही सदा तेरे लिए परेशान रहती है
क्या तू यह कर पाएगा
जब वह चल न पाएगी
सहारा क्या तू बन पाएगा।
सोच यही माँ है,
जो आज भी तुझ पर जान छिड़कती है
तेरे ऊपर खुद को न्योछावर करती है
बलइयां कोई और नहीं लेगा
दुआ कोई तुझे नहीं देगा.......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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