कलम से____
मनाओ दीवाली तुम
जलाओ घर में चिराग
रौशनी की खातिर,
अंधेरों को दूर करने के लिए
एक ही दीप काफी है !!
मुझे अभी जरूरी
काम करने है
अपने बच्चों की खातिर
खुशियों में शरीक़ हो लूँगी
काम पहले निपटा लूँ
घर की सफाई तो कर लूँ
सजावट का सामान जो लाई हूँ
लगा तो लूँ
पटाखे जहाँ चलाएगें वहाँ बाल्टी
पानी से भर के रख तो दूँ
चलूँ सरदी है पड़ने लगी
रजाई कंबल निकाल तो दूँ
स्वेटर बुन के जो रखा है
उसको बस एक बार धो तो लूँ
अपने हाथों से पहनाऊँगी
उसे आज अपने हाथों की बनी पूडी पकवान खिलाना है मुझे
न जाने कितने काम हैं वाकी
मुझे अभी जो करने हैं
चलूँ उठूँ टागें दुखती हैं तो क्या अभी तो हाथ पांव चलते हैं
न चलेगें जिस दिन तब की तब देखी जाएगी अभी जिन्दगी चलती है
जब तक चलती है
चलाई जाएगी ......
बेटा आकर यह कहता है, माँ
जा रहे हैं हम सब लोग बच्चे भी मेघा के घर
दीवाली वहीं मनाएंगे
आप यहीं रहना, घर का ख्याल है जो रखना
देखना, आप अकेली हो
घर को देखती रहना !!
चिराग एक जलाऊँ तो जलाऊँ
अब किसके लिए ....प्रश्न अचानक उठ खड़ा होता है, उत्तर भी अपने आप मिल जाता है
चलो कोई बात नहीं
खुश रहूँगी मैं, अपने लिए
जलाऊँगी चिराग सिर्फ एक अपने उनके लिए
वह तो आएगें शाम आज की वह मेरे साथ ही बिताएगें
बरस हो गए हैं कई
शाम कोई एक न गई जिस दिन याद उनकी न आई हो
आखँ मेरी, उनके लिए, न भर आई हो !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
No comments:
Post a Comment