Saturday, October 18, 2014

एक और रविवार की सुबह, जिक्र पुराने एडवेंचर वाले दिनों का.....





कलम से____

एक और रविवार की सुबह, जिक्र पुराने एडवेंचर वाले दिनों का......

बात पुरानी है
डायरी से निकाल छानी है
सन 1966-67 का जमाना
तब मैं रानीपुर में रहता था
(Bhel के Sector 5-A में)
घर के ठीक सामने पहाडियों से घिरा सुदंर जगंल
शिवालिक की घाटी से गिरा हुआ
जब कभी मन डूबा करता
हर की पैड़ी चला जाया करता था
यदाकदा जंगल भी बुला लिया करता था
रानीपुर फौरस्ट रेंज का ब्रिटिश कालोनियल टाइप का एक गेस्ट हाउस हुआ करता था
नहीं पता अब है कि नहीं
जाकर वहाँ मन को अच्छा बहुत लगता था
दूर दूर तक घाटी का दृश्य
बरसाती मौसम में मन मोह लिया करता था
रानीराव नदी उफान पर जब होती थी
राहगीरों का रास्ता अवरुध्द हुआ करता था
उन्हीं दिनों की बात है
  जगंल से मोह हुआ
भीतर घुसने का मन बहुत किया करता था
राहुल सांकृत्यान जी की
"मालिनी के वनों में" और "शिवालिक की घाटी में" रचनायें वहीं बैठ पढ़ीं थीं
   मालिनी के वनों की नायिका से मन मिलने को लालायित रहता था।

फौरेस्ट रेस्ट हाउस पर एक दिन मुलाकात हो गई
 जलालुद्दीन गूजर से बात तय हो गई
चलेगें उसके साथ जंगल में
एक रात रहेगें खायेंगे पीयेंगे
 जैसे गूजर लोग रहा करते हैं
मौज करी मस्ती खूब रही
   भैंसों का दूध पिया मावा खाने को खूब मिला
जंगल में जंगली जीवन का अहसास किया
 जलालुद्दीन से ही बात होती थी
घरवालों को हिंदी समझ नहीं आती थी
नहीं जानते थे, वह सब, कहाँ किस मुल्क में रहते हैं
  सिर्फ दूध निकालना या मावा के काम करने में दिन कटता था
 शादी ब्याह भी कबीलों के बीच होता था
बाहरी दुनियाँ से कोई नाता उनका न होता था
जलालुद्दीन ही हरिद्वार जाता आता
बस वही दूध मावा बेच पैसे लाता
अजीब सा लगता है न, यह सब
पल पल जीवन उनका ऐसे ही कटता था
इस अजीबोगरीब माहौल में
शान्ति और खुशियों से मन प्रसन्न रहता था।

जगंल में जाना कितना अच्छा लगता था
मन आज भी कभी कभी भटकता है
जगंल जाने को करता है
मृगनयनी सी मालिनी के वन की राजकुमारी से मिलने को भटका करता है।

धन्य हैं राहुल जी आप युग पुरुष की तरह रहे
घूमे फिरे और जीवन अपना खूब जिये
  हम लोगों के भाग्य ऐसै कहाँ
भाग्यशाली आप जैसे कम हुआ करते हैं।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment