दीवाली क्या आई
हर साल की तरह
एक आफत सी है आई
बाज़ार में भीड़-भाड़़
अचानक न जाने कहाँ से है उतर आई।
जिसे देखो
सामान खरीदफरोक्त
में है लगा
लगता है सारा
बाज़ार आज ही बिकेगा
कल के लिए के लिए कुछ न बचेगा
मारा-मारी है मची
किस-किस की सुने
दुकानदार
कभी इधर की कभी उधर की
ड्यूटी अदा कैसे करे।
मियाँ-बीबी में तकरार
का सबब है बनी
यह दीवाली
वह कहे मेरे उनके लिए
कुछ नहीं खरीदा
दूसरा कहे मेरे उनके
लिए कहां कुछ है खरीदा
लेन-देन के इस
व्यापार में हुआ
है रंग जो फीका
बड़ी मुश्किल से चढ़ेगा
जब बम जोरदार फटेगा
तब चेहरा कहीं
जाकर खिलेगा।
चलाओ चलाओ
अपने अपने बम और पटाके
बस ख्याल रहे इतना
किसी का दिल नहीं दुखे
खुशियों का है त्योहार
मिल-बांट के है मनाओ
हो सके तो
सबके चेहरे के
खिलने का सबब बन जाओ।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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