Friday, October 24, 2014

कल रात धूम धड़ाका होता रहा।






कलम से ____

कल रात
धूम धड़ाका होता रहा
लोगां खुशियाँ मनाते रहे
हम आकाश में
कभी इधर तो कभी उधर
भटकते रहे
नींद पलकों में अलसाई रही
हम, घर अपना तलाशते रहे
भोर होने को थी
तब जाकर कहीं
जगह मिली
बैठ कर
हम जहाँ से
जग का मुजरा देखते रहे !!

( Heavy pollution all around and not going for morning walk. After effects of our great festivity.)

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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