कलम से____
मुर्दों के शहर में लाशें आने लगीं हैं
भीड़ यहाँ फिर से बढ़ने लगी है
चार दिन की चादंनी थी बिखरी रही
अंधड चला जो धुंधली अब पड़ने लगी है !!
मागँ भरी जो दिखती रही चार दिन तक
फिर सूनी सूनी सी दिखने लगी है
चौखट से चिपके पैर जस के तस रह गए हैैं
महावर की चमक भी फीकी पड़ने लगी है !!
रौनक चेहरे पर जो आ गई थी
हौले हौले फिर उड़ने लगी है
सभंले हुऐ अभी दिन दो हुए नहीं है
तिल तिल कर जिन्दगी काटने लगी है !!
मुर्दों के शहर में लाशें वापस आने लगीं हैं
भीड़ यहाँ फिर से बढ़ने लगी है !!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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