तम झोंपड़ी के दूर
मैं सामर्थ्य भर करता रहा
था अकेला
सिहरता रहा सरद रातों में ठिठुरता रहा
मरता रहा जीता रहा
रात भर मैं, फिर मी
जलता रहा !!
सूर्योदय
के पहले ही
मुझे बुझा दिया,
कह कर मुझे, यूँ विदा किया
साध्यं बेला में
फिर प्रज्वलित कर लेगें
तिमिर
इस कुटिया से दूर कर देंगे
थोड़ा सा प्रकाश कर
हम फिर जी लेगें !!
मन प्राण हमारे
बसते हैं यहाँ
जायें तो जायें अब कहाँ
शेष कुछ खुशियां हैं हमारे भाग में
सबको खुशी मनाते देख
हम भी थोड़ा ही सही खुश हो लेंगे !!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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