कलम से____
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
धुंधले मन से निकली
उर-तन्त्री की पीड़ा
यूँ कहती, समाप्ति पर है अब यह जीवन लीला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
आकाश में गतिविहीन सितारे
मांग रहे साथ हाथ पसारे
सूनी मागें, सूरज किरणों से हमने दुख दिन भर झेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
मनवा हो रहा बिचिलित
लयताल श्वासों का टूटा
आस मिलन की लिए, अंतस खाली खाली सा डोला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
नभ में विचरण करता
आकुल व्याकुल सा
राह नीड़ की खोज रहा है, बिछड़ा पंक्षी एक अकेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
धुंधले मन से निकली
उर-तन्त्री की पीड़ा
यूँ कहती, समाप्ति पर है अब यह जीवन लीला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
आकाश में गतिविहीन सितारे
मांग रहे साथ हाथ पसारे
सूनी मागें, सूरज किरणों से हमने दुख दिन भर झेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
मनवा हो रहा बिचिलित
लयताल श्वासों का टूटा
आस मिलन की लिए, अंतस खाली खाली सा डोला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
नभ में विचरण करता
आकुल व्याकुल सा
राह नीड़ की खोज रहा है, बिछड़ा पंक्षी एक अकेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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